देवी मां : शरद नवरात्रि

देवी माँ: शरद नवरात्रि 


श्रीमहाकाली नाशिक


महालया, दुर्गा पूजा की पवित्र शुरुआत, रेडियो पर बीरेंद्र कृष्ण भद्र की महिषासुरमर्दिनी*** के साथ सभी बंगाली / हिंदु परिवारों को जागृत करती है। जैसे ही भक्ति जोर पकड़ती है, पूरा पश्चिम बंगाल काश के फूलों की सुगंध से भर जाता है। महिषासुरमर्दिनी, एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली ऑडियो रचना है, जिसमें भक्ति गीत, शास्त्रीय संगीत और चंडीपाठ का मिश्रण है। बंगाली और हिंदी में यह कार्यक्रम पूरे भारत में विविध दर्शकों तक पहुंचता है। महालया पर, लोग पितृ तर्पण और पिंड दान अनुष्ठानों के माध्यम से अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं। इनमें शुद्धिकरण स्नान, सूर्य को अर्घ्य, सात्विक भोजन, ब्राह्मणों की मेजबानी और जानवरों को खाना खिलाना शामिल है। वंशजों की कुंडली में 'पितृ दोष' के मुद्दों का समाधान करते हुए, ये अनुष्ठान शांति और मोक्ष लाते हैं, उन्हें स्वास्थ्य, धन और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। 

नोट: *** इसका पाठ भद्र ने किया था। इसे पहली बार 1931 के महालया पर प्रसारित किया गया था। तब से, ऑल इंडिया रेडियो ने 1976 को छोड़कर हर साल के महालया पर इस कार्यक्रम को प्रसारित किया है। यह कार्यक्रम, जो लाइव-प्रदर्शन के रूप में शुरू हुआ था, अपने पूर्व-रिकॉर्ड किए गए प्रारूप में 1952 से प्रसारित किया गया है ।


संदर्भ: https://en.m.wikipedia.org/wiki/Birendra_Krishna_Bhadra#:~:text=It%20was%20recited%20by%20Bhadra,pre%2Drecorded%20format%20since%201952.


आप नीचे दिए गए लिंक पर जाकर मंत्र सुन सकते हैं

https://youtu.be/C4_QsJI2dX0?si=U6yjk-gF5RIXncHc


देवी मां 🌹


स्तुति 


अयि गिरिनन्दिनि महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते

त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते

शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते

कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।

धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।

सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते

त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते

मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे

प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते

कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।

सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥


नौ देवियां 


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“शरद नवरात्रि प्रथमा — शैलपुत्री”


नवरात्र के दौरान माता के भक्त नौ दिनों तक देवी के नौ अलग-अलग रूप की पूजा करते हैं। माता के इन 9 रूपों को 'नवदुर्गा' के नाम से जाना जाता है। शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूप में पहले स्वरूप में जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।

शरद नवरात्रि प्रथमा की शुभकामनाएं ।


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“शरद नवरात्रि द्वितीया - ब्रह्मचारिणी”


नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।

भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।

कहते है माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।

"दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला-कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥"


शरद नवरात्रि द्वितीया की शुभकामनाएं।


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“शरद नवरात्रि तृतीया - चन्द्रघण्टा”


माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन “मणिपुर” चक्र में प्रविष्ट होता है।

देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी माना गया है। इसीलिए कहा जाता है कि हमें निरन्तर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखकर साधना करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र है। इसीलिए इस देवी को चन्द्रघण्टा कहा गया है। इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के दस हाथ हैं। वे खडग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं।

सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है। इसके घण्टे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस काँपते रहते हैं।

नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा का महत्व है। इस देवी की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियाँ सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए।

इस देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। इसलिए हमें चाहिए कि मन, वचन और कर्म के साथ ही काया को विहित विधि-विधान के अनुसार परिशुद्ध-पवित्र करके चन्द्रघण्टा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना करना चाहिए। इससे सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। यह देवी कल्याणकारी है।

"पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥"


शरद नवरात्रि तृतीया की शुभकामनाएं ।


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“शरद नवरात्रि चतुर्थी - कुष्मांडा"


नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में अवस्थित होता है।

नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्माण्डा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मन्द, हल्की हँसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्माण्डा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

इस देवी की आठ भुजाएँ हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्माण्ड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्माण्डा।

इस देवी का वास सूर्यमण्डल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कान्ति और प्रभा सूर्य की भाँति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएँ आलोकित हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।

अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।

विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यह देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।

"सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे॥"


शरद नवरात्रि चतुर्थी की शुभकामनाएं ।


सात चक्र 

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“शरद नवरात्रि पंचमी - स्कंदमाता”


नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। इस देवी की चार भुजाएँ हैं। यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इस देवी की चार भुजाएँ हैं। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कन्दमाता। नवरात्रि में पाँचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कन्द कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कन्दमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कन्द बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।

शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कान्तिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।

उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएँ स्कन्दमाता की कृपा से ही संभव हुईं।

"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥"


शरद नवरात्रि पंचमी की शुभकामनाएं ।


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“शरद नवरात्रि षष्ठी - कात्यायनी”


माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।

नवरात्रि में छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है।

इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी सहजता से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं।

माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिन्दी यमुना के तट पर की गई थी।

इसीलिए यह ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यन्त भव्य और दिव्य है। यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। माँ के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।

इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

"चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥"


शरद नवरात्रि षष्ठी की शुभकामनाएं ।


देवी मां: योगीराज आश्रम मुंबई


दुर्गा षष्ठी असाधारण अकाल बोधन अनुष्ठान 

दुर्गा षष्ठी असाधारण अकाल बोधन अनुष्ठान का प्रतीक है, जो देवी दुर्गा का एक अपरंपरागत आह्वान है। यह अनोखा समारोह पारंपरिक वसंत उत्सव (वासंती पूजा) से अलग है। किंवदंती के अनुसार, प्रसिद्ध रामायण के राम-रावण युद्ध के दौरान जब रावण ने विशाल कुंभकर्ण को भेजा, तो भगवान राम ने दैवीय हस्तक्षेप की मांग की। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने राम को आश्वस्त किया और विजय के लिए देवी दुर्गा का आह्वान करने की सलाह दी। राम झिझक रहे थे, उन्हें पता था कि यह दक्षिणायन है, वह समय जब देवी पारंपरिक रूप से देवलोक में विश्राम करती हैं। हालाँकि, ब्रह्मा ने पुजारी बनकर राम की ओर से बोधन और पूजा करने की प्रतिज्ञा की। राम ने कात्यानी स्तंभ का जाप किया, जबकि ब्रह्मा ने वेदों से देवी सूत्र का पाठ किया। राम की भक्ति की परीक्षा हुई, जिसमें देवी दुर्गा ने राम द्वारा अर्पित किये जाने वाले 108 कमलों में से एक कमल को छुपा लिया। जब राम ने गायब कमल के स्थान पर अपनी आंखें चढ़ाने का इरादा किया, तो देवी ने हस्तक्षेप किया और उन्हें वरदान दे दिया। अपरंपरागत समय की इस अनोखी पूजा को “अकाल-बोधन” नाम दिया गया है। षष्ठी की शुभकामनाएँ!


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“शरद नवरात्रि सप्तमी — कालरात्रि”

माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।

कहा जाता है कि कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्माण्ड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं।

नाम से अभिव्यक्त होता है कि माँ दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अन्धकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।

इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं। इनकी साँसों से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।

बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो परन्तु यह सदैव शुभ फल देने वाली माँ हैं। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।

“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।

वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥”


शरद नवरात्रि सप्तमी की शुभकामना।।


“महा-सप्तमी: प्राण प्रतिष्ठित मां”

महा सप्तमी, एक पूजनीय अवसर है, जो देवी दुर्गा और राक्षस राजा महिषासुर के बीच हुए शाश्वत युद्ध की याद दिलाता है। इसके अलावा, यह दिन उस दिव्य वादे को भी दर्शाता है जो तब दिया गया था जब भगवान राम ने अकाल बोधन अनुष्ठान किया था, जिससे मां दुर्गा ने अपने धनुष के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की प्रतिज्ञा की थी। इस दिन मनाए जाने वाले प्राण प्रतिष्ठान में पंडित प्रतिष्ठित ग्रंथों के पवित्र मंत्रों के साथ मूर्तियों में प्राण डालते हैं। महा सप्तमी के दिन भोर होने पर, दुर्गा माता के नौ दिव्य रूपों के प्रतीक नौ पवित्र पौधों को श्रद्धापूर्वक पवित्र गंगा नदी के तट पर ले जाया जाता है, जहां विसर्जन के माध्यम से उन्हें शुद्धि मिलती है। जहां नदी से निकटता चुनौतीपूर्ण है, वहां गंगा जल इस उद्देश्य को पूरा करता है। इसके अलावा, एक युवा केले के पौधे, जिसे काला बौ के नाम से जाना जाता है, को अनुष्ठानिक रूप से नहलाया जाता है, साड़ी पहनाई जाती है और एक स्थानीय नदी के किनारे रखा जाता है। महासप्तमी का आशीर्वाद सभी को दिव्य कृपा से स्पर्श करे। शुभ महा सप्तमी!

वर्षों पूर्व से चली आ रही #दुर्गा जी की मधुर और आनंदित कर देने वाली आरती की स्वर-लहरियाँ इस लिंक पर हैं :

https://www.kooapp.com/koo/DrVishnu/ab44ccf5-5618-4ce6-b704-9d2393cd419b


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“शरद नवरात्रि अष्टमी - महागौरी”


माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र श्वेत हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकि चार भुजाएँ हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है इनको।

इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शान्त है।

पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी कारण से इनका शरीर काला पड़ गया परन्तु तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कान्तिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं।


शिवलिंग श्रीमहाकाली नाशिक 


यह अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।

एक और मान्यता के अनुसार एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में वहाँ पहुँचा जहाँ देवी ऊमा तपस्या कर रही होती है। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, परन्तु वह देवी के तपस्या से उठने का प्रतीक्षा करते हुए वहीं बैठ गया। इस प्रतीक्षा में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गई। उन्होने द्याभाव और प्रसन्न्ता से उसे भी अपना वाहन बना लिया क्‍योंकि वह उनकी तपस्या पूरी होने के प्रतीक्षा में स्वंय भी तप कर बैठा।

कहते है जो स्त्री माँ की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वंय करती हैं।

"श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव-प्रमोद-दा॥"

शरद नवरात्रि अष्टमी की शुभकामनाएं।।

“कुमारी पूजा”

कुमारी पूजा, दुर्गा पूजा का एक अभिन्न अंग है, जिसमें एक अविवाहित किशोर लड़की को देवी के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसकी प्रथा को अधिक बल दिया दक्षिणेश्वर, कोलकाता के श्री रामकृष्ण परमहंस ने। उनसे प्रेरित होकर यह परंपरा हर महिला में मां दुर्गा की शक्ति की सर्वव्यापकता को खूबसूरती से रेखांकित करने के लिए जनमानस में पैठ गई है, और यह प्रथा दिव्य मां के रूप में उनकी योग्य श्रद्धा पर जोर भी देती है। स्वामी विवेकानन्द की इसी कड़ी में एक विरासत जो एक सदी से भी अधिक पहले, 1898 में ,प्रादुर्भाव ली थी, अत्यंत मार्मिक है। स्वामी विवेकानन्द ने उस समय अपनी यात्रा के दौरान, विनम्रतापूर्वक एक मुस्लिम नाविक से श्रीनगर के “खीर भवानी मंदिर” में उसकी चार वर्षीय बेटी को दुर्गा के रूप में पूजा करने की अनुमति देने के लिए कहा था। यह प्रथा आज भी जारी है। इसमें समावेशिता और सांप्रदायिक सद्भाव का गहरा संदेश गूंजता है।

शुभ महा-अष्टमी! 🌷


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“शरद नवरात्रि नवमी - सिद्धिदात्री”

माँ सिद्धिदात्री 

भोर भई माँ…

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माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। नवरात्र में यह अन्तिम देवी हैं। हिमाचल के नन्दापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है।

माना जाता है कि इनकी पूजा करने से बाकी देवीयों कि उपासना भी स्वंय हो जाती है।

यह देवी सर्व सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव हो जाते हैं। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियाँ होती हैं। इसलिए इस देवी की सच्चे मन से विधि विधान से उपासना-आराधना करने से यह सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।

कहते हैं भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरन्तर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करनी चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।

"सिद्धगन्धर्व-यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।"


शरद नवरात्रि नवमी की शुभकामनाएं।

"धुनुची नाच"

महानवमी, नवरात्रि का नौवां दिन, नौ दिवसीय उपवास का समापन होता है और राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत का जश्न मनाता है। इस महान पौराणिक कथा में, आकार बदलने वाले राक्षस महिषासुर ने पृथ्वी को आतंकित कर दिया था। देवताओं ने अपनी शक्तियों को एकजुट करके, दुर्गा का निर्माण किया, जो नौ दिनों तक युद्ध में लगी रही और अंततः महानवमी के दिन उसका वध कर दिया। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। अनुष्ठानों के बीच, पश्चिम बंगाल का धुनुची नाच भी अत्यंत प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा ने युद्ध के दौरान ऊर्जा इकट्ठा करने के लिए स्वयं धुनुची के साथ नृत्य किया था, जिससे यह नृत्य समर्पण का भी प्रतीक बन गया। महानवमी इस स्थायी पौराणिक कथा का जश्न मनाती है, जो आध्यात्मिक नवीनीकरण का प्रतीक है। सभी को महानवमी की शुभकामनाएँ !


।।जय माँ दुर्गा।।

नवरात्रि की शुभकामनाएं !!!

🌺🌺🌺 🌷 सुप्रभात 🌷 🌺🌺🌺








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