हजरत मुहम्मद
”हजरत मुहम्मद”
(1) क्रूरता, नृशंसता के स्वेच्छाचार में सराबोर अरब के अज्ञानकाल में विक्रमीय संवत् 617 अर्थात् 560 ईस्वी (हर्षवर्धन काल) में मक्का के प्रसिद्ध “क़ुरैश वंश” के हासिम परिवार में “मुहम्मद” का जन्म हुआ था।
(2) इनकी माताजी का नाम “आम्ना” और पिताजी का नाम “अब्दुल्ला” था। जब ये दो वर्ष के थे, तभी पिताजी का देहान्त हो गया था। जब ये 5 वर्ष के हुये तो माताजी का स्वर्गवास हो गया और फिर 8 वर्ष की उम्र में पहुँचते समय इनके बाबा भी दुनिया छोड़कर चल बसे।
(3) अब इनके देखभाल की ज़िम्मेवारी इनके चचा “अबू तालिब” पर आ पड़ी। इस तरह अबू तालिब के स्नेहमय संरक्षण में पशुओं को चराते, खेलते - कूदते उनका स्वच्छन्द बाल्यकाल बीता।
(4) युवावस्था में ही उनको अनेक ईसाई संतों का समागम प्राप्त हुआ, जिसके फलस्वरूप काबा में स्थित मूर्तिपूजा के विकृत स्वरूप ने उनके मन को अधिक विद्रोही होने की प्रेरणा दी।
(5) सदाचारी मुहम्मद धर्म और नीति दोनों में कुशल थे। उन्होंने उस समय मक्का में प्रचलित रूढ़ि और पाखन्डवाद के विरूद्ध आवाज़ उठाई। तत्कालीन पाखन्डवाद और अनाचार में ग्रस्त कुरैश-वंश, युवा मुहम्मद के खन्डनात्मक तर्को से क्रोधित होकर, उसे कष्ट देने लगा।
(6) “मुहम्मद” के परिवार के लोग, इनके चचा अबुजहल आदि इनके परम शत्रु हो गये, और इनका कत्ल करने की योजना बनाने लगे। हाँ, इनके संरक्षक और चचा अबू - तालिब, जो कहा जाता है मुसलमान तो अन्त तक न हुये, परन्तु इनके सदैव सहायक रहें।
(7) वैचारिक क्रान्ति के होते हुये भी “मुहम्मद” पढ़े - लिखे नहीं थे। ईश - कृपा और संतों के साथ सतसंग से 40 वर्ष की उम्र में उन्हें “जिब्राइल” फरिश्ता (देवदूत) के दर्शन हुये, और तब से उन्हें “कुरान की आयतों” का ज्ञान प्रकट होता रहा। आयत अर्थात् ज्ञान पद। यहीं से उनकी पैगम्बरी प्रारम्भ हुयी और वे “हजरत पैगम्बर मुहम्मद” कहलाने लगें।
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